Geetanjali – Ravindranath Tagore

हे नाथ ! तू मेरी इतनी विनती

हे, नाथ ! तू मेरी इतनी विनती स्वीकार कर;

एक बार स्वीकार कर !

मेरे हृदय में बस जा, अब लौट कर न जा !

जो दिन तेरे वियोग में गया, वह धूलि में मिल गया !

अब तेरे ही प्रकाश में जीवन-कलिका को खिलाने के लिए

मैं दिनानुदिन जाग रहा हूँ ।

किस उन्माद में, किस खोज में, मैं इधर-उधर की राहों पर

भटकता रहा ? कौन जाने ?

अब मेरे हृदय पर कान रख और अपनी ही आवाज़ सुन !

मेरे पास जो पाप-धन या छल-बल शेष दिखाई दे,

उस के कारण मुझे मत लौटा दे

उसे आग से भस्म कर दे !

अनुवाद: सत्यकाम विद्यालंकार, इंदु जैन

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