I translated a Gujarati poem વિષાદ in Hindi.
मुझे पसंद है,
मेरा विषाद…
बहुधा प्रेम करता हूँ
और
इस तरह स्वागत करता रहता हूँ
मेरे विषाद का !
बस,
फ़िर उस के प्रति आत्मसमर्पण करता हूँ…
वह भी मेरा स्वीकार करता है
(कोई तो है, जो मेरा स्वीकार करता है…
और,
किसी को तो मैं समर्पित हो सकता हूँ
पूर्णरूपेण !!)
मैं उस का मज़ा लेता हूँ,
वह मुझे गले से लगाता है
कस कर…
मेरा अस्तित्त्व हाँफ़ने लगे तब तक…
मुझे मज़ा आता है,
जब वह छिल देता है
मेरी आत्मा को,
अपने अद्रश्य नाखूनों से
(जो मुझे किसी प्रेयसी के
स्पर्श से भी ज़्यादा रेशमी लगते हैं)
और जला देता है अपनी
अगनज्वाला में
मेरी
अमरत्व प्राप्त इच्छाओं को भी !
मुझे पसंद है,
मेरा विषाद…
इसीलिए तो
फ़िर से नए प्रेम की
खोज में हूँ
आजकल !
July 8, 2008 at 4:18 pm |
Excellent translation of an excellent poem.