I tried to translate a very famous and popular Gujarati poem penned by Shri Adil Mansoori. Hope it will cross the language barrier and reach out to many hearts out there!!
नदी की रेत में खेलता शहर मिले ना मिले,
फिर से यह दृश्य स्मृतिपट पर मिले ना मिले ।
भर लो सांस में उस की महक का दरिया,
बाद में यह मिट्टी की भीनी असर मिले ना मिले ।
परिचितों को दिल भर कर देख लेने दो,
यह मुस्कुराते चेहरे, यह मीठी नज़र मिले ना मिले ।
भर लो आँख में रास्ते, खिड़कियाँ, दीवारें,
बाद में यह शहर, यह गलियाँ, यह घर मिले ना मिले ।
रो लो आज रिश्तों से लिपट कर यहाँ,
बाद में किसी को किसी की कब्र मिले ना मिले ।
विदा करने आये हैं वो चेहरे घूमेंगे आँखों में,
चाहे सफ़र में कोई हमसफ़र मिले ना मिले ।
वतन की धूल से माथा भर लूँ ‘आदिल‘,
अरे, यह धूल बाद में फ़िर उम्रभर मिले ना मिले ।
July 10, 2008 at 1:46 am |
ખૂબ સરસ ભાષાંતર કર્યું
યાદ આવી
अजीब शहर लगने लगा है .
बेदर्दों की इज्जत करने …
नेमत-ए-मुलाकात में
तेरे निशान मिले है |
July 11, 2008 at 4:05 pm |
रो लो आज रिश्तों से लिपट कर यहाँ,
बाद में किसी को किसी की कब्र मिले ना मिले ।
gr888888888
July 11, 2008 at 4:40 pm |
સરસ અનુવાદ . કવીએ આ ગઝલ અમદાવાદ છોડતાં લખી છે.